Friday, July 30, 2010

दुनिया को इस नजर से भी देखें…

दुनिया को देखने का नजरिया लगभग हर आदमी का एक सा ही है। लोग सिर्फ वही देखते हैं जो वास्तव में वे देखना चाहते हैं लेकिन दुनिया को जिस नजर से देखने की जरूरत है, वैसे तो कोई देख ही नहीं पाता। यह बात थोड़ी अटपटी है लेकिन हमारे संतों, ऋषि-मुनियों ने इसे खूब समझा और समझाया है। एक मुस्लिम फकीर का किस्सा तो खासा प्रसिद्ध है।
यह दुनिया एक सराय है। इसलिए फकीरों ने कहा है हम दुनिया में रहें दुनिया हम में न रहे। संसार से जितना लगाव बढ़ता है सांसारिक चीजें बेचैनी के उतने ही सामान हमारे भीतर उतार देती है। बलख के बादशाह इब्राहिम की जिंदगी का एक मशहूर किस्सा है। वे अपने दरबार में बैठे हुए थे। उनका मिजाज फकीरी रहता था। हर बात को गहरे तरीके से सोचते थे। एक बार एक शख्स उनके दरबार में सीधा घुस गया और बादशाह के सिंहासन के पास जाकर इधर-उधर देखने लगा। इब्राहिम ने पूछा क्या देख रहे हैं और क्या चाह रहे हैं। उस शख्स ने फरमाया एक-दो दिन का मुकाम चाहता हूँ। बादशाह बोले शौक से रहिए। उस शख्स ने कहा रह तो जाता लेकिन यह तो सराय है और मुझे सराय में नहीं ठहरना।
बादशाह चौंक गए उन्होंने कहा होश में बात करिए यह सराय नहीं बादशाह का महल है। उस शख्स ने फरमाया यह बताओ क्या तुमसे पहले भी इस जगह कोई रहते थे। बादशाह ने कहा- हाँ, मेरे पिता और उसके पहले मेरे दादा। कई पीढ़ियां इससे गुजर गईं। वह शख्स मुस्कुराया और बोला जब इतने लोग यहाँ रहकर चले गए तो फिर यह सराय नहीं हुई तो और क्या हुई। इसी का नाम तो दुनिया है। है सराय की तरह और हम हमेशा का ठिकाना मान लेते हैं। यहाँ कोई किसी का नहीं होता। मजबूर तमन्नाओं के कदम थक जाते हैं पर कोई किसी को सहारा नहीं देता। बादशाह समझ गए बात गहरी की जा रही है और उन्होंने उस शख्स से पूछा- आप कौन हैं तो पता लगा वे हजरत खिज्र थे। दरअसल हम सब मुसाफिर हैं और मुसाफिर का मकसद मंजिल होता है। अपने मुकाम तक पहुंँचने के लिए कुछ हल्के-फुल्के ठिकाने जरूर ले लेता है लेकिन मुसाफिर भूलता नहीं है कि उसकी मंजिल कौन-सी है। हम सबकी मंजिल वह परमशक्ति है, धर्म का मार्ग कोई भी हो।

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