Thursday, December 30, 2010

इन 5 संकल्पों के साथ हो नए साल का आग़ाज

नववर्ष का आगाज़ नए संकल्पों के साथ करना आने वाले कल को बेहतर बना सकता है। किंतु ऐसे कौन से संकल्प हो सकते हैं, जो साल-दर-साल जिंदग़ी को बेहतर बनाए। साथ ही इन संकल्पों की पूर्ति व्यक्तिगत रुप से ही फायदेमंद न हो, बल्कि उनका लाभ दूसरों को भी मिले।

धर्म के नजरिए से पांच बातें इंसानी जिंदग़ी को बेहतर बनाती है। इसलिए इन बातों को पांच तरह की संपत्ति भी माना गया है। इन संपत्तियों को पाने का संकल्प लेना ही किसी भी व्यक्ति को ताउम्र खुशियां देगा। जानते हैं कौन-सी है ये पांच संपत्तियां -

1.स्वास्थ्य

2.धन

3.विद्या

4.चतुरता

5.सहयोग

स्वास्थ्य - सुखी जीवन के लिए सबसे जरूरी है निरोगी शरीर। कमजोर, रोगी, बदसूरत शरीर आपकी खुशियों और कामयाबी में रोड़ा बन जाता है। धर्म के नजरिए से जरूरी है कि आप इन्द्रिय संयम रखें। सरल शब्दों में जीवनशैली और दिनचर्या को नियमित और अनुशासित रखें। व्यर्थ के शौक या मौज की मानसिकता शारीरिक और मानसिक ऊर्जा को नष्ट करती है।

इस तरह शक्ति का दुरुपयोग और समय गंवाना शरीर और मन को रोगी बना सकता है। इसलिए नए साल के लिए ऐसी बातों और आचरण से बचने और अच्छे स्वास्थ्य का संकल्प लें। तभी आप व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अच्छे नतीजे पाएंगे।



घर में बगीचा क्यों लगाते हैं?

अधिकांश घरों में थोड़ी जगह फूलों के लिए भी निकाली जाती है। कई घरों में छोटे-छोटे बगीचे बनाए जाते हैं तो कहीं-कहीं गमलों में फूलों के पौधे लगाए जाते हैं। रंग-बिरंगे फूलों की महक से हमारा घर का वातावरण हमेशा सुखद अहसास देने वाला बना रहता है। पुराने समय से ही घर के बाहर बगीचा रखने की परंपरा है। धर्म ग्रंथों में कई प्रसंग मिलते हैं जहां वाटिकाओं का उल्लेख किया गया है।

घर के बाहर बगीचे रखने के पीछे धार्मिक कारण तो है साथ ही इसका हमारी मानसिक स्थिति पर भी शुभ प्रभाव पड़ता है। इसका धार्मिक कारण यही है कि फूल भगवान को चढ़ाएं जाते हैं। जब भी पूजा-अर्चना आदि कार्य होते हैं तो हमेशा हमें ताजे फूल बगीचे से मिल जाते हैं। इस प्रकार के घरों पर दैवी-देवताओं की भी विशेष कृपा होती हैं क्योंकि पुष्प से सभी भगवान तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं।

फूलों की सुंगध से हमारे घर का वातावरण महकता रहता है जिससे मन को शांति मिलती है। दिमाग में हमेशा सकारात्मक विचार आते हैं। नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव घर की ओर से नष्ट हो जाता है।

फूल हमें अच्छा जीवन जीने की भी प्रेरणा देते हैं। फूलों का जीवन कम अवधि का होता है परंतु फिर भी वे जब तक मुरझा नहीं जाते तब तक वातावरण में सुगंध फैलाते रहते हैं। इसी प्रकार हमें भी समाज में ऐसा ही स्वभाव रखना चाहिए जिससे हमारे आसपास लोगों को सुख की प्राप्ति हो सके। वास्तु शास्त्र के अनुसार भी घर में बगीचा होना अनिवार्य बताया गया है। घर के बाहर की वाटिका घर के कई वास्तु दोषों को समाप्त कर देती है।


स्वभाव से होता है इंसान बड़ा

इंसान के बडे छोटे होने में उसके स्वभाव का बड़ा हाथ होता है। विनम्रशील व्यक्ति भले ही पद में छोटा या गरीब हो फिर भी वह अपने नम्र स्वभाव से अपने बडप्पन का परिचय दे देता है।



एक बार महात्मा एक नगर में पधारे। राजा के मंत्री ने राजा से कहा कि हमारे नगर में परम ज्ञानी संत पधारे है हमें चलकर उनका स्वागत करना चाहिए। लेकिन राजा के मन सत्ता का घंमड था वह मंत्री से बोला कि मैं राजा हूं और सभी मुझसे मिलने आते हैं बुद्ध को अगर मुझसे मिलना है तो वे खुद यहां आएगें मंत्री राजा को समझाते हुए बोला संत पुरुष जनता के लिए श्रद्धा के पात्र होते हैं इसलिए वह राजा से भी ऊपर होते हैं। अत: उनका आदर सम्मान करना हमारा फर्ज है। राजा ने कहा कि मैं जनता का गुलाम नहीं हूं मैं वही करूगा जो मुझे अच्छा लगेगा। तब मंत्री ने राजा को अपना इस्तीफा देते हुए कहा कि आपमें बडप्पन नहीं है मैं आपकी सेवा नहीं कर सकता। राजा ने मंत्री से कहा कि मै राजा हूं और राजा बडा होता हैं अपने बडप्पन के कारण ही मैं बुद्ध से मिलने नहीं जा रहा हूं। मंत्री बोला आप अपने घंमड को अपना बडप्पन मत समझिए महात्मा बुद्ध भी सम्राट शुद्धोधन के बेटे थे लेकिन धर्म की रक्षा के लिए उन्होने राज्य त्याग कर भिक्षु बनना स्वीकार किया। इतना सुनकर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह तुरंत राजगणों के साथ महात्मा बुद्ध का स्वागत करने पहुंचा।



कथा का अर्थ है कि विनम्रता ही इंसान को बड़ा और महान बनाती है। जो व्यक्ति पद और माया का घमंड करता है वह कभी सम्मान नहीं पाता।





मंदिर जाने से पहले ध्यान रखें यह बातें...

मंदिर या देवालय सभी की आस्था का केंद्र होते हैं। इसी वजह से यहां किसी भी मंदिर में प्रवेश करने के लिए शास्त्रों द्वारा कुछ नियम बताए गए हैं। सभी श्रद्धालुओं के लिए इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है। मंदिर जाने से पहले कुछ छोटी-छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें ध्यान रखने योग्य हैं-

- यदि आपने कोई नशा जैसे शराब, सिगरेट, ड्रग्स इत्यादि ले रखा है तो मंदिर में प्रवेश कतई ना करें। यह भगवान के प्रति असम्मान का भाव दिखाता है।

- मंदिर जाने के लिए हमारा तन और मन पूरी तरह स्वच्छ होना चाहिए।

- मंदिर में अपने साथ कोई हथियार ना ले जाएं।

- मंदिर में प्रवेश से पूर्व सबसे पहले अपने जूते-चप्पल इत्यादि बाहर ही निकाल दें, साथ ही मौजे भी। कुछ लोग मौजे सहित ही मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं। उससे उनके मौजे की बदबू से मंदिरों का वातावरण प्रदुषित होता है, और अन्य श्रद्धालुओं को परेशानी होती है अत: मौजे भी बाहर ही निकाल देना चाहिए। इससे मंदिर की पवित्रता और सफाई बनी रहेगी।

- जूते उतारने के पश्चात अपने हाथ-पैर अच्छे से धो लें। ताकि आपके हाथ-पैर पूर्णरूप से साफ और स्वच्छ हो जाए।

- मंदिर में किसी भी परिस्थिति में अपने पैर भगवान की ओर करके ना बैठे। यह असम्मान की भावना व्यक्त करता है।

- चूंकि मंदिर के फर्श पर श्रद्धालु भगवान के सामने मत्था टेंकते हैं, कुछ श्रद्धालु दण्डवत प्रणाम करते हैं। अत: फर्श को बिल्कुल गंदा ना करें।

- भगवान की परिक्रमा घड़ी की सुई जिस दिशा में घुमती है उसी के अनुसार करें।

- मंदिर में भगवान की ओर पीठ करके न बैठें।

सुबह जल्दी उठें, क्योंकि...

24 घंटे का एक दिन और इस एक दिन में हम कई कार्य करते हैं। पूरे दिन के कार्य के बाद रात तक सभी थकान महसूस करते हैं। इस थकान का हमारे स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही समय पर सोना और सही पर उठना बहुत जरूरी है। नींद से भी अधिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो इसलिए रात को जल्दी सोना और सुबह सूर्योदय से पहले उठने की बात कही जाती है।

पुराने समय से ही सुबह जल्दी उठने की परंपरा है। ऋषि मुनि और विद्वानों के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठने का विशेष महत्व बताया गया है। रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। उनके अनुसार यह समय नींद से उठने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। ऐसा माना जाता है जल्दी उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

जल्दी उठने पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों लाभ प्राप्त होते हैं। सुबह-सुबह का वातावरण हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। दिन में वाहनों से निकलने वाला धुआं वातावरण को प्रदूषित कर देता है जबकि सुबह यह वायु प्रदूषण भी नहीं होता और न ही ध्वनि प्रदूषण। यह हमारे शरीर और मन दोनों को फायदा पहुंचाने वाला है।

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में अद्भूत शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु अमृत के समान माना गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। सभी धार्मिक कार्य ब्रह्म मुहूर्त में करने पर विशेष धर्म लाभ प्राप्त होता है। इसी वजह से प्रात: काल की आरती आदि पूजन कर्म को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।

पति-पत्नी एक साथ पूजा क्यों करें?

अकेले खाना न खाएं, क्योंकि...

अच्छे स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए सही भोजन बहुत जरूरी है। साथ ही भोजन किस प्रकार करना चाहिए, इस बात का भी हमारे स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। खाने के संबंध में ऐसी मान्यता है कि परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ भोजन करना चाहिए। घर में ही नहीं बल्कि बाहर भी अकेले खाना नहीं चाहिए। घर के बाहर मित्रों के साथ खाना खाने से मित्रता का रिश्ता और मजबूत बनता है।

अधिकांश बड़े-बुजूर्ग अक्सर यही बात कहते हैं कि खाना सभी को एक साथ बैठकर खाना चाहिए। इससे घर के सदस्यों में प्रेम बढ़ता है और रिश्ते मजबूत बनते हैं। यदि हम पुराने समय से आज की तुलना करें तो यही बात सामने आती है कि आज अधिकांश घरों में लड़ाइयां बढ़ रही हैं। परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम की कमी आ गई है और अपनापन घट रहा है। जबकि पुराने समय में परिवार के सभी सदस्यों में अटूट प्रेम रहता था और सभी एक-दूसरे का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। इसकी वजह यही है कि उस समय दिन में कम से कम दो बार पूरा परिवार साथ बैठता था और सभी साथ खाना खाता थे। उस समय सभी जीवन की कई परेशानियों का हल निकाल लेते थे। जबकि आज समय अभाव के कारण घर के सभी सदस्य पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते। ऐसे में सदस्यों का आपस में संपर्क काफी कम हो जाता है। धीरे-धीरे इसी वजह से परिवार में कलह आदि की बात सामने आने लगती है। इन्हीं कारणों से सभी विद्वान और वृद्धजन यही बात कहते हैं कि पूरे परिवार को एक साथ खाना चाहिए। ताकि सभी सदस्यों का आपस में संपर्क हमेशा बना रहे और प्रेम में किसी भी प्रकार की कोई न आ सके।

सभी के साथ खाना खाने से हम अच्छे से भोजन कर पाते हैं, जबकि अकेले में कई बार ठीक से भोजन नहीं हो पाता। यह स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। साथ ही पूरा परिवार एक साथ खाना खाएगा तो सभी का खाने का समय भी निश्चित रहेगा। इससे परिवार के सभी सदस्यों की सेहत भी अच्छी रहती है।

मंदिर जाएं तो घंटी जरूर बजाएं

दिरों से हमेशा घंटी की आवाज आती रहती है। सामान्यत: सभी श्रद्धालु मंदिरों में लगी घंटी अवश्य बजाते हैं। घंटी की आवाज हमें ईश्वर की अनुभूति तो कराती है साथ ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। घंटी आवाज से जो कंपन होता है उससे हमारे शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घंटी की आवाज से हमारा दिमाग बुरे विचारों से हट जाता है और विचार शुद्ध बनते हैं।

पुरातन काल से ही मंदिरों में घंटियां से लगाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जिस मंदिर से घंटी बजने की आवाज नियमित आती है, उसे जागृत देव मंदिर कहते हैं। उल्लेखनीय है कि सुबह-शाम मंदिरों में जब पूजा-आरती की जाती है तो छोटी घंटियों, घंटों के अलाव घडिय़ाल भी बजाए जाते हैं। इन्हें विशेष ताल और गति से बजाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि घंटी बजाने से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के देवता भी चैतन्य हो जाते हैं, जिससे उनकी पूजा प्रभावशाली तथा शीघ्र फल देने वाली होती है।

पुराणों के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से हमारे कई पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, वहीं स्वर घंटी की आवाज से निकलती है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। धर्म शास्त्रियों के अनुसार जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा।

मंदिरों में घंटी बजाने का वैज्ञानिक कारण भी है। जब घंटी बजाई जाती है तो उससे वातावरण में कंपन उत्पन्न होता है जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन की सीमा में आने वाले जीवाणु, विषाणु आदि सुक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं तथा मंदिर का तथा उसके आस-पास का वातावरण शुद्ध बना रहता है। साथ ही इस कंपन का हमारे शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घंटी की आवाज से हमारा दिमाग बुरे विचारों से हट जाता है और विचार शुद्ध बनते हैं। नकारात्मक सोच खत्म होती है। इसी वजह से हम जब भी मंदिर जाए तो मंदिर की घंटी जरूर बजानी चाहिए।



Saturday, December 25, 2010

Christmas Celebrations in India

Christmas in India may not be as widespread affair as in some western country but in India, this festival is celebrated by the Christian community across the country with great zeal and gaiety. It is a public Holiday and is also officially celebrated by the President of India at his residence. All the top notch officials of Government of India offer good wishes to the people on the occasion via media. Though the traditional festivity of Christmas to a great extent is confined to the Christian community, the celebration has acquired a secular tinge with time. In several parts of India, the celebrations of Christmas are joined by people of all religions and communities.


Christmas Celebrations in IndiaThe celebrations of Christmas in India also begin months before the arrival of the festival. As the weather in the country at this time is also very pleasant, the festivities and shopping also get a boost. The market in India offers its best offer at this occasion. Apart from the availability of traditional Christmas items for Christmas in India is also marked by traditional Christmas rituals like Christmas carols, cakes, candles and the decoration of Christmas tree. Throughout the country, special programs are organized at various churches throughout the country.

Apart from the beautifully decorated market, several missionary run educational institutions in the country also celebrate the festival with immense joy and fervor. Also, there is a mid year vacation which is also termed as Christmas vacation. The vacations begin shortly before Christmas and end after the New Year celebrations. The celebrations here become grand because they combine with the zeal of the arrival of the New Year.
Generally, on the day of Christmas, people of Christmas fraternity gather in church for worship. Here, they attend Church services and sing carols. There is also the concept of Midnight in India. In fact, it is a very important service and holds great religious significance amongst the Christians of the country. On the night of 24th December, all the Christian families attend the Midnight mass at the local churches. The Churches in India are also decorated with the Poinsettia flowers and candles. Feasting also forms an important part of the Christmas celebrations.
Though the celebration of Christmas can be observed throughout India, the customs for the celebration of Christmas vary a little depending upon the region. For example, in contrast to the Christians in Goa and North India, the Christians living in South India decorate banana or mango trees instead of the traditional pine tree. Some people also decorate their houses with the oil-burning lamps (diyas) on the rooftops of their houses. Though it would be interesting for you to know that only 3% of the total population of India is actually Christian but compared to this fraction, the fanfare of the Christmas celebrations is extremely grand in India.
HAAPY CHRISTMAS .........25 DECEMBER 2010

Wednesday, December 15, 2010

SHAMA KA AMRIT

Jeevan  ke kisi mod jane anjane hum apnon ko thes pahuch jate hai. Is galti ka man ekrar karta hai. Juban ejhaar nahi kar pati. Dil mein shama bhaw hote huye bhi hum shamyachana ke do bol bi nahi kah pate. Fir ek din jab ve apne humare beech mouzud nahi rahte, humara man kachotata rahata hai, bar-bar maphi mangata hai enhi bato se juda hai …………….
ye Question……………………………….!!

Koi vyakti jo ab is duniya me nahi hai, usse Maphi magni ho to aap kya karoge..??

Vo khyab humara hai

Bada hi khushgawar mousam hai, par gati our buti udas hai. Phoolon ka mousam unhi ko chhuta hai, jinke man me gulab hote hai……..
Kisi ne sach hi kaha hai, Pyaar to bank ki tarah hai, Pyaar deposit karoge, to badale mein pyaar hi milega. Bachain ruho ko kahi rahat nahi………!
Jeevan me kabhi kabhi khushiya itani kam lagne lagti hai ki man sochata hai, kash..! khushiyon ki
Bhi koi dukan hoti. Jaha se jab chahe jitani khushiya kharidi ja sakti. Lekin khushiyon ko hasil karne ka jariya koi our nahi balki aap khud ho

Vo khyab humara hai

Thursday, September 2, 2010

Krishna Janmashtami

Krishna Janmashtami (Devanagari कृष्ण जन्माष्टमी) , also known as "Krishnashtami","Saatam Aatham" ,"Gokulashtami", "Ashtami Rohini", "Srikrishna Jayanti", "Sree Jayanthi" or sometimes merely as "Janmashtami", is a Hindu festival celebrating the birth of Krishna, an avatar of the Hindu deity Vishnu.[1]
Krishna Janmashtami is observed on the Ashtami tithi, the eighth day of the dark half or Krishna Paksha of the month of Shraavana in the Hindu calendar, when the Rohini Nakshatra is ascendant. The festival always falls within mid-August to mid-September in the Gregorian calendar. In 2009, for example, the festival was celebrated on the 14th of August, while in 2010, the festival will be celebrated on 2nd September.
Rasa lila or dramatic enactments of the life of Krishna are a special feature in regions of Mathura and Vrindavan, and regions following Vaishnavism in Manipur. While the Rasa Lila recreates the flirtatious aspects of Krishna's youthful days, Govinda Pathaks or Dahi Handi celebrate the God's playful and mischievous side, where teams of young men form human pyramids to reach a high-hanging pot of butter and break it. This tradition also known as Uriadi is a major event in Tamil Nadu on Gokulashtami.

Friday, August 13, 2010

Librarian's Day

FIRST LIBRARIAN'S DAY Announced by RAJA RAM MOHAN RAI FOUNDATION, (Government of India) Colkata in all country. So first celebrate on August 12, 2010 in India

Saturday, July 31, 2010

ANUBHAV KA VIKALP NAHI…….

Experience and age ke importance ko samjhne ke liye chaliye ek chhoti si management ki story ka majha lete hai! Ek baar old woman apne bude paltu shwan k sath jangal me ghumne gai, shwan jangal me old woman k sath ghum raha tha, achanak vah kisi chhote janwar ko dekhta hai or uske pichhe dorta hai, kuchh samay baad use pata chalta hai ki wah jangal me kho gaya. Itne me durse ek yuva chite ki nazar shwan par padti hai or vah teji se shikar karne ki niyat se shwan ki aor dorta lagana shuru kar deta hai. Shwan sochta hai ki aaj to jaan gai. Itne me uski nazar pass pari haddiyon par parti hai.vah chite ki taraf pith karke haddiya chawane lag jata hai. Jaise hi chita pass hai tab shwan jor se chillata hai ki kya swadist chita tha, kash..! yesa ek or chita khane ko milta. Yah sunte hi yuva chita ruk jata hai or khud se kahne lagta hai ki aaj to jaan bach gai nahi to yah shwan mujhe kha jata.Dono par ek bandar ki nazar thi, jo sabkuchh dekh raha tha. Bandar ne socha ki chalo iska faida uthaya jaye or chite ko sach batakar usse suraksha ki gaaranti li jaye. Yuva chite ne jab asliyat jani tab vah gusse se bhar gaya or apni pith par bandar ko bithakar fir se shwan ko khane nikala. Old shwan ne dono ko apni aor aate dekha. Usne hausla nahi khoya or na hi dar ko hawi nahi hone diya. Jaise hi dono pass aaye, usne jor se kaha ki are kaha gaya vo bandar…mujhe bol gaya tha ki khane ke liye ek or chite ko taiyar karke lata hu. Yah sunkar chita bhi bhag gayaor uske pahle bandar vaha se bhag chuka tha .Dosto old shwanne dhairiye or saahas na khokar paristithi ka badi hi nidarta ke sath samna kiya. Vahi yuva chite ke pass taakat hone ke bavjud vah dar gaya. Baat saaf hai kisi bhi kshetra me anubhaw ka koi wikalp nahi hai. Fir chahe vah Engineering ka kshetra ho ya Chikitsa ka ya fir anya koi kshetra . Anubhavi vyakti se jab bhi sikhne ko mile, Uska faida jarur uthaye. Viprit paristithiyo se saamna karne ke liye aapko kitabi gyan nahi, Anubhavi vyakti ka hi saath kaam aayega………………….!

Friday, July 30, 2010

Sukhvendra gautam (Dada) KVS Librarian from Dhule Maharastra


Satish Bisen Librarian Acropolis From Indore M.P.

दुनिया को इस नजर से भी देखें…

दुनिया को देखने का नजरिया लगभग हर आदमी का एक सा ही है। लोग सिर्फ वही देखते हैं जो वास्तव में वे देखना चाहते हैं लेकिन दुनिया को जिस नजर से देखने की जरूरत है, वैसे तो कोई देख ही नहीं पाता। यह बात थोड़ी अटपटी है लेकिन हमारे संतों, ऋषि-मुनियों ने इसे खूब समझा और समझाया है। एक मुस्लिम फकीर का किस्सा तो खासा प्रसिद्ध है।
यह दुनिया एक सराय है। इसलिए फकीरों ने कहा है हम दुनिया में रहें दुनिया हम में न रहे। संसार से जितना लगाव बढ़ता है सांसारिक चीजें बेचैनी के उतने ही सामान हमारे भीतर उतार देती है। बलख के बादशाह इब्राहिम की जिंदगी का एक मशहूर किस्सा है। वे अपने दरबार में बैठे हुए थे। उनका मिजाज फकीरी रहता था। हर बात को गहरे तरीके से सोचते थे। एक बार एक शख्स उनके दरबार में सीधा घुस गया और बादशाह के सिंहासन के पास जाकर इधर-उधर देखने लगा। इब्राहिम ने पूछा क्या देख रहे हैं और क्या चाह रहे हैं। उस शख्स ने फरमाया एक-दो दिन का मुकाम चाहता हूँ। बादशाह बोले शौक से रहिए। उस शख्स ने कहा रह तो जाता लेकिन यह तो सराय है और मुझे सराय में नहीं ठहरना।
बादशाह चौंक गए उन्होंने कहा होश में बात करिए यह सराय नहीं बादशाह का महल है। उस शख्स ने फरमाया यह बताओ क्या तुमसे पहले भी इस जगह कोई रहते थे। बादशाह ने कहा- हाँ, मेरे पिता और उसके पहले मेरे दादा। कई पीढ़ियां इससे गुजर गईं। वह शख्स मुस्कुराया और बोला जब इतने लोग यहाँ रहकर चले गए तो फिर यह सराय नहीं हुई तो और क्या हुई। इसी का नाम तो दुनिया है। है सराय की तरह और हम हमेशा का ठिकाना मान लेते हैं। यहाँ कोई किसी का नहीं होता। मजबूर तमन्नाओं के कदम थक जाते हैं पर कोई किसी को सहारा नहीं देता। बादशाह समझ गए बात गहरी की जा रही है और उन्होंने उस शख्स से पूछा- आप कौन हैं तो पता लगा वे हजरत खिज्र थे। दरअसल हम सब मुसाफिर हैं और मुसाफिर का मकसद मंजिल होता है। अपने मुकाम तक पहुंँचने के लिए कुछ हल्के-फुल्के ठिकाने जरूर ले लेता है लेकिन मुसाफिर भूलता नहीं है कि उसकी मंजिल कौन-सी है। हम सबकी मंजिल वह परमशक्ति है, धर्म का मार्ग कोई भी हो।

कौन थीं कृष्ण की 16100 रानियां?

श्रीकृष्ण का नाम आते ही हमारे मन असीम प्रेम उमड़ता है। सभी जानते हैं कि असंख्य गोपियां थी जो श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती थीं। परंतु उनकी शादी श्रीकृष्ण से नहीं हो सकी। श्रीकृष्ण की प्रमुख पटरानी रुकमणी पटरानी रुकमणी सहित उनकी 8 पटरानियां एवं 16100 रानियां थीं। कुछ विद्वानों का यह मत है कि कृष्ण की प्रमुख रानियां तो आठ ही थीं, शेष 16,100 रानियां प्रतीकात्मक थीं। इन्हें वेदों की ऋचाएं माना गया है। ऐसा माना जाता है चारों वेदों में कुल एक लाख श्लोक हैं। इनमें से 80 हजार श्लोक यज्ञ के हैं, चार हजार श्लोक पराशक्तियों के हैं। शेष 16 हजार श्लोक ही गृहस्थों या आम लोगों के उपयोग के अर्थात भक्ति के हैं। इन श्लोकों को ऋचाए कहा गया है, ये ऋचाएं ही भगवान कृष्ण की पत्नियां थीं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक रानी से 10-10 पुत्र एवं प्रत्येक रानी से 1-1 पुत्री का जन्म हुआ।

मर्यादा सीखें रामायण से….

रामायण में ऐसे कई गूढ़ रहस्य छिपे हैं जो वर्तमान समय में हमें जीने की सही राह दिखाते हैं। रामायण में मर्यादाओं के पालन पर विशेष जोर दिया गया है। रामायण में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जहां भगवान श्रीराम ने मर्यादाओं के पालन के लिए त्याग कर आदर्श उदाहरण पेश किया। श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए 14 साल का वनवास भी सहज रूप से स्वीकार कर लिया। इसीलिए उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया।रामायण में ऐसे भी कई प्रसंग आते हैं जहां मर्यादा का पालन न करने पर पराक्रमी व बलशाली को भी मृत्यु का वरण करना पड़ा। जब भगवान राम ने किष्किंधा के राजा बालि का वध किया तो उसने भगवान से प्रश्न पूछा-मैं बेरी सुग्रीव प्याराकारण कवन नाथ मोहि मारा,प्रति उत्तर में जो बात राम ने कही वह मर्यादा के प्रति समर्पण को दर्शाती है-अनुज वधू, भग्नी, सुत नारी,सुन सठ ऐ कन्या सम चारीअर्थात अनुज की पत्नी, छोटी बहन तथा पुत्र की पत्नी। यह सभी पुत्री के समान होती है। तुमने अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी को बलात अपने कब्जे में रखा इसीलिए तुम मृत्युदंड के अधिकारी हो।ऐसे ही मानवीय संबंधों को मर्यादाओं में बांधा गया है। इस प्रकार मर्यादाएं व्यक्ति के मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है। वर्तमान समय में जहां पाश्चात्य सभ्यता हमारे बीच घर करती जा रही हैं वहीं रामायण एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो हमें मर्यादाओं की शिक्षा दे रहा है।

क्यों मानते हैं अतिथि को भगवान ?

क्या कारण है कि गृहस्थ जीवन को सन्यास से भी अधिक श्रेष्ठ व कठिन माना गया है? एक गृहस्थ व्यक्ति की जिंदगी में अनायास ही सारी तप साधना शामिल है। इसीलिये तो गृहस्थ इंसान बगैर घर-परिवार छोड़े ही जीवन के असली मकसद यानि कि पूर्णता को प्राप्त कर सकता है। जिंदगी के जिस मकसद को पाने की खातिर कोई साधक घर-परिवार ही नहीं पूरा संसार ही छोड़कर सन्यासी बन जाता है। आखिर इतनी अनमोल उपलब्धि दुनियादारी में डूबा हुआ सामान्य व्यक्ति कैसे प्राप्त कर लेता है?
सारा रहस्य गृहस्थ इंसान के कर्तव्यों में छुपा है। इंसानी जिंदगी को जिन चार अनिवार्य और अति महत्वपूर्ण भागों में बांटा गया है, उनमें से दूसरा है- गृहस्थ आश्रम। गृहस्थ में रहकर कुछ कर्तव्यों को करना अनिवार्य बताया गया है। किसी विवाहित या परिवार वाले गृहस्थ इंसान के लिये जिन कार्यों करना निहायत ही जरूरी है वे इस प्रकार हैं-
जीव ऋण: यानि घर आए अतिथि, याचक तथा पशु-पक्षियों का उचित सेवा- सत्कार करना ।देव ऋण: यानि यज्ञ आदि कार्यों द्वारा देवताओं को प्रशन्न एवं पुष्ट करना।शास्त्र ऋण: जिन शास्त्रों या ग्रंथों से हमने ज्ञान-विज्ञान सीखकर जीवन को श्रेष्ठ बनाया है, उनका सम्मान, हिफाजत एवं प्रचार प्रसार करना।पितृ ऋण: यानि कि अपने पूर्वजों और पित्रों की सुख-शांति के लिये शास्त्रोक्त तरीके से श्राद्ध-कर्म का करना।ग्राम ऋण: यानि कि जिस गांव समाज और देश में पल-बढ़कर हम बड़े हुए हैं, उसकी भलाई की खातिर अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करना।

सबके सपनों का अर्थ..

सपने हमें अतार्किक या अगणितीय मालूम पड़ते हैं, लेकिन इनके अपने अर्थ होते हैं। हमारे मन की भीतरी परत में जो चल रहा होता है, ये उसकी ही अभिव्यक्ति होते हैं। हमारे जीवन की घटनाओं-परिस्थितियों से इनका सीधा सरोकार रहता है। यह अचेतन मन की भाषा है, इनके माध्यम से अचेतन संवाद करता है, लेकिन प्रतीक रूप में। सालों से अध्ययनकर्ता सपनों को समझने, उसकी व्याख्या करने में लगे थे।
इस दौरान उन्हें कुछ दिलचस्प चीजों पता चलीं। उन्होंने पाया कि कुछ ऐसे सपने हैं, जिन्हें कमोबेश हर इंसान कभी न कभी देखता है। जैसे सबसे आम सपना ख़ुद को नीचे गिरते या डूबते देखने का है। इस तरह का सपना वे लोग देखते हैं, जिन्हें असुरक्षाबोध हो या व्यावहारिक जीवन में सहयोग नहीं मिल रहा है। वैसे, काम या भावनाओं के हावी होने पर भी इस तरह के सपने आते हैं।
इसी तरह, ख़ुद को नग्न-अर्धनग्न या ग़ैरतुकी ड्रेस (जैसे ऑफिस में पायजामा पहने हुए) पहने हुए सपना भी बहुत लोग देखते हैं। इस तरह का सपना व्याकुलता या शर्म का परिचायक है। लेकिन इससे गर्व या स्वतंत्रता की भावना भी छिपी हो सकती है। इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि व्यावहारिक जीवन में आप ख़ुद को ज्यादा प्रदर्शित कर चुके हैं या अपनी गोपनीय जानकारी बता चुके हैं। बहुत से लोग सपने में अपना मुंह खोलते हैं और पाते हैं उनके दांत नहीं हैं, या झड़ना शुरू हो चुके हैं। इसका सामान्य अर्थ यह है कि हम बुरे दिखने को लेकर हुए डरे हैं। लेकिन गहरा अर्थ व्यावहारिक जिंदगी में शक्तिहीन होने का भय है।
सपनों में भी भय की मनोग्रंथि का दख़ल रहता है। अधिकांश लोगों को पीछा किए जाने के सपने आते हैं। यह सपना बताता है कि हम किसी व्यक्ति या वस्तु को लेकर आशंकित या डरे हुए हैं। वैसे ये सपने अर्थहीन भी हो सकते हैं, वास्तविक जिंदगी में घटी घटना के प्रभाव से भी व्यक्ति इस तरह का सपना देखता है। अगर आप इस तरह का सपना देख रहे हैं, जिसमें आप या आपका प्रिय पात्र बीमार है, जख्मी है या मर रहा है.. तो इसका मतलब है कि आप भावनात्मक रूप से आहत हैं या फिर अपमानित होने का भय आपको सता रहा है।
इसमें चेतावनी भी है कि या तो आपको या आपके प्रियजन को कोई शारीरिक पीड़ा आने वाली है। परीक्षा में फेल होने का सपना भी लोगों को अक्सर आता है। मजे की बात यह है कि ये सपने उन्हें भी आते हैं, जिनका स्कूल-कॉलेज से नाता टूटे काफ़ी अरसा हो गया है। इसका मतलब है, आपको लग रहा है कि आप अपनी लाइफ में कुछ ग़लत निर्णय ले रहे हैं या आपको परखा जा रहा है।