Saturday, May 14, 2011

उपासना और श्रद्धा-वि​श्वास


सनातन धर्म के अनुसार उपासना ही ईश्वर से जुडऩे का अतिप्राचीन और सबसे सरल तरीका है। हिंदुओं द्वारा आरती, सिखों द्वारा अरदास, मुसलमानों द्वारा नमाज, यह सभी उपासना के ही रूप हैं। उपासना करने वाले उपासक को परमात्मा की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। भगवान अपनी कृपा कई रूपों में भक्त को प्रदान करते हैं जैसे-

- जब भक्त द्वारा मांगी गई इच्छा पूर्ण होने पर उपासना करता है, तो भगवान भक्त से कहते हैं- ये लो वत्स मैं तुम्हे वह वर देता हूं, जो तुम चाहते हो।

- कभी-कभी उपासक ऐसी मनोकामना के लिए उपासना करता है जिसमें भगवान को उसका खुद का हित दिखाई ना देता हो तो भगवान कहते हैं- मैं तुम्हें वह नहीं दूंगा जो तुम मांग रहे हो, क्योंकि इसमें मुझे तुम्हारा अहित प्रतीत हो रहा है।

- कोई इच्छा ऐसी होती है जिसकी पूर्ति का समय ना आया हो और भक्त परमात्मा से उस मनोकामना को पूर्ण करवाने के लिए उपासना करता है तो भगवान कहते हैं अभी तुम्हारी इच्छा पूर्ण होने का समय नहीं आया है, अत: प्रतीक्षा करो।

- भगवान अपने भक्तों पर सदैव कृपा और प्रेम बरसाते रहते हैं। इसी प्रेमवश कभी-कभी वे अपने उपासक की इच्छा से भी बहुत ज्यादा कृपा कर देते हैं। परमात्मा कहते हैं मैं तुम्हारी उपासना से बहुत प्रसन्न हूं अत: यह लो मैं तुम्हें तुम्हारी मनोकामना से भी बहुत बेहतर वर प्रदान करता हूं।

भगवान की उपासना चाहे जिस भाव से की जाए परंतु हर उपासना में भक्त के विश्वास, श्रद्धा, धैर्य, भक्ति की परीक्षा ही होती है।
 
santosh uikey
 


ये है जीवन जीने का सूफीयाना अंदाज


यूं तो हर धर्म में जीवन जीने और मौत का सामना करने को लेकर अपने-अपने दार्शनिक खयाल हैं, जीवन को कैसे जीया जाए, इसे लेकर हर धर्म ने लगभग एक ही संदेश दिया है कि हम जीएं तो हमारे जीवन के केंद्र में वो परमशक्ति होनी चाहिए जिसे हम भगवान या परमात्मा कहते हैं। सूफी संतों ने भी यही कहा है कि जीवन में अल्लाह को हमेशा अपने साथ रखो, यानी उसमें डूब जाओ। सूफी उसी को कहते हैं जो शख्स अल्लाह के साथ साफ दिल रखे।

ऊपर वाले ने हर इन्सान को दो बड़ी प्यारी चीज दी है श्रद्धा और सब्र, लेकिन आदमी इनको संभालकर इस्तेमाल नहीं करता। बशर हाफी नाम के फकीर ने जिन्दगी के आखरी वक्त में कैसे दुनिया छोड़ी जाए इस पर शानदार बातें कही हैं। उनका कहना था जिनके खयाल पाक और दिल साफ हैं वो ही लोग जिन्दगी की आजादी का लुत्फ उठा सकेंगे। उन्होंने शांति को लेकर एक अलग ही दर्शन दिया था। वे कहा करते थे इन्सान तब ही शांत हो सकेगा जब उसके दुश्मन उससे बेखौफ हो जाएंगे। बात सूफी अंदाज में है लेकिन अपना ली जाए तो दुनिया में अमन आने में सुविधा हो जाएगी। आज की तारीख में इस इस्लामी फकीर की यह बात समझना बहुत जरूरी है। इस वक्त में तो दुश्मन क्या बेखौफ हो, दोस्त ही दोस्त से डरा हुआ है।

बशर की फकीरी अलग ही अन्दाज की थी। उनकी एक सूफ्ती का रहस्य समझा जाए। वे कहते थे ऊपर वाले ने अपने दोस्तों की फेहरिस्त में तेरा नाम दिया है, उसने तो अपना काम कर दिया अब ऐ बंदे, तू दोस्त होने की कोशिश तो कर। वह परवरदिगार, दोस्तों का दोस्त, हमें अपने साथ रखने की तबीयत हमेशा रखता है और हम हैं कि भूले भूले जाते हैं। बात समझने जैसी है बशर कहते हैं जिसका दोस्त अल्लाह है वह दुनिया को दुश्मन कैसे मान सकता है। हमें उसका शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने हमें अपना माना, सच तो यह है कि जिन्दगी जामे-शुकराना (कृतज्ञता का घूंट) है, इसीलिए जिन्दगी में प्रेम ही प्रेम होना चाहिए, फिर हिंसा और आतंक किस बात के लिए।